मानस मंत्र: सिअनि सुहावनि टाट पटोरे, प्रभु की कृपा से टाट पर भी सुहावनी लगती है रेशम की सिलाई
Chaupai, ramcharitmanas : श्रीरामचरितमानस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी अनन्य भगवद् भक्त के द्वारा की गई है. मानस मंत्र के अर्थ को समझते हुए मानस की कृपा से भवसागर पार करने की शक्ति प्राप्त करते हैं -
Motivational Quotes, Chaupai, ramcharitmanas: रामचरितमानस के बालकाण्ड में तुलसीदास जी ने तीन प्रकार के कवियों की वंदना की है व्यास आदि बड़े-बड़े कवि जो सतयुग, त्रेता, द्वापर में हुए है उनकी वंदना प्रथम की फिर कलियुग में जो संस्कृत के कवि कालिदास, भवभूति आदि हुए हैं उनकी वंदना करते है. तीसरी शैली में भाषा के कवियों को प्राकृत कवि कहकर सुचित किया है, और अंत में भाषा के कवियों की वंदना की है.
एहि प्रकार बल मनहि देखाई ।
करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ।।
ब्यास आदि कबि पुंगव नाना ।
जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ।।
इस प्रकार मन को बल दिखला कर मैं श्री रघुनाथ जी की सुहावनी कथा की रचना करूँगा. व्यास आदि जो अनेकों श्रेष्ठ कवि हो गये हैं, जिन्होंने बड़े आदर से श्री हरि का सुयश वर्णन किया है.
चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे ।
पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ।।
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा ।
जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ।।
मैं उन सब श्रेष्ठ कवियों के चरण कमलों में प्रणाम करता हूँ, वे मेरे सब मनोरथों को पूरा करें. कलियुग के भी उन कवियों को मैं प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने श्री रघुनाथ जी के गुण समूहों का वर्णन किया है.
जे प्राकृत कबि परम सयाने ।
भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ।।
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें ।
प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें ।।
जो बड़े बुद्धिमान् प्राकृत कवि हैं, जिन्होंने भाषा में हरि चरित्रों का वर्णन किया है, जो ऐसे कवि पहले हो चुके हैं, जो वर्तमान समय में हैं और जो आगे होंगे, उन सब को कपट त्यागकर प्रणाम करता हूँ.
होहु प्रसन्न देहु बरदानू ।
साधु समाज भनिति सनमानू ।।
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं ।
सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ।।
आप सब प्रसन्न होकर यह वरदान दीजिये कि साधु-समाज में मेरी कविता का सम्मान हो क्योंकि बुद्धिमान् लोग जिस कविता का आदर नहीं करते, मूर्ख कवि ही उसकी रचना का व्यर्थ परिश्रम करते हैं.
कीरति भनिति भूति भलि सोई ।
सुरसरि सम सब कहँ हित होई ।।
राम सुकीरति भनिति भदेसा ।
असमंजस अस मोहि अँदेसा ।।
कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है जो गंगा जी की तरह सबका हित करने वाली हो. श्री रामचन्द्र जी की कीर्ति तो बड़ी सुन्दर है और सबका अनन्त कल्याण करने वाली है, परन्तु मेरी कविता भद्दी है. यह असामंजस्य है अर्थात इन दोनों का मेल नहीं मिलता, इसी की मुझे चिंता है.
तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे ।
सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ।।
प्रभु की कृपा से यह बात भी मेरे लिये सुलभ हो सकती है. टाट की हो या रेशम की हो, सिलाई अच्छी होने पर सुहावनी लगती ही है. इसी तरह टाट रूपी वाणी को श्री राम यश के धागे से सीता हूं, प्रभु कृपा करे तो वह भी अच्छी लगेगी. श्री राम यश रेशम उसमें भी चमकेगा.
दोहा—
सरल कबित कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान ।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ।।
चतुर पुरुष उसी कविता का आदर करते हैं, जो सरल हो और जिसमें निर्मल चरित्र का वर्णन हो तथा जिसे सुनकर शत्रु भी स्वाभाविक वैर को भूलकर सराहना करने लगें.
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